UPPSC No Normalization: क्या नॉर्मलाइजेशन प्रणाली छात्रों के साथ अन्याय कर रही है?

UPPSC No Normalization: क्या नॉर्मलाइजेशन प्रणाली छात्रों के साथ अन्याय कर रही है?

 UPPSC No Normalization – क्या नॉर्मलाइजेशन प्रणाली सही है या गलत?

प्रस्तावना:

आज सोशल मीडिया पर एक हैशटैग ज़बरदस्त चर्चा में है — #UPPSC_No_Normalization। यह ट्रेंड न सिर्फ यूपी के लाखों प्रतियोगी छात्रों की आवाज़ बन चुका है, बल्कि पूरे देश में परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल उठा रहा है। आइए समझते हैं कि यह "नॉर्मलाइजेशन" मुद्दा क्या है, इसका विवाद क्यों हो रहा है और इसका भविष्य क्या हो सकता है।


नॉर्मलाइजेशन क्या होता है?

नॉर्मलाइजेशन एक सांख्यिकीय प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल विभिन्न शिफ्टों में आयोजित परीक्षाओं के अंकों को तुलनीय बनाने के लिए किया जाता है। जब किसी परीक्षा को कई शिफ्ट्स में लिया जाता है, तो यह माना जाता है कि हर शिफ्ट की कठिनाई स्तर अलग हो सकता है। इस असमानता को संतुलित करने के लिए नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूला लगाया जाता है।


UPPSC में विवाद क्यों?

एक ही प्रश्नपत्र, अलग परिणाम: कई बार पेपर एक जैसा ही होता है, लेकिन फिर भी नॉर्मलाइजेशन लागू कर दिया जाता है।


पारदर्शिता की कमी: उम्मीदवारों को यह नहीं बताया जाता कि किस आधार पर उनके नंबर घटाए या बढ़ाए गए।


मेहनत पर पानी: छात्र यह महसूस कर रहे हैं कि नॉर्मलाइजेशन के कारण वास्तविक मेहनत और प्रदर्शन का मूल्यांकन सही नहीं हो रहा।


छात्रों की मुख्य मांगें:

नॉर्मलाइजेशन को पूरी तरह खत्म किया जाए, खासकर तब जब परीक्षा एक ही पेपर से ली गई हो।


मार्किंग प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए।


उम्मीदवारों को उनके raw score और normalized score दोनों दिखाए जाएं।


कानूनी और प्रशासनिक प्रतिक्रिया:

कई अभ्यर्थी इस मुद्दे को लेकर हाई कोर्ट जा चुके हैं।


आयोग की तरफ से अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है।


कुछ शैक्षिक संगठनों ने इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक और आवश्यक बताया है, लेकिन पारदर्शिता की कमी को भी स्वीकारा है।


सोशल मीडिया पर असर:

ट्विटर पर लाखों छात्र अपनी आवाज़ एकजुट कर रहे हैं।


YouTube और Facebook पर लाइव डिबेट्स, जागरूकता वीडियो और रियल स्टोरीज वायरल हो रही हैं।


यह ट्रेंड शिक्षा नीति में बदलाव की संभावनाओं को जन्म दे रहा है।


निष्कर्ष:

#UPPSC_No_Normalization केवल एक हैशटैग नहीं, बल्कि युवाओं की निष्पक्षता की मांग है। यह मुद्दा भारत की परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। सरकार और आयोग को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

आशीष @kyonyaarblog

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